Sunday, May 8, 2011

साइबर पत्रकारिता की आचार सहिंता

हाल ही मे हुई ब्लागर्स मीट की बहुत सी उत्साह्जनक रिपोर्टे पढने और चित्र देखने को मिले. अच्छा है इस तरह के सामूहिक मेल मिलाप होने चाहिए. रिपोर्ट्स पर आई टिप्प्णिया भी उतनी ही जोशीली थी। लेकिन इन तमाम रिपोर्टो और टिप्पणिओ मे कुछ ऐसा है जो नही दिख रहा और जिसे समझा जाना शायद ज़्यादा ज़रूरी है। मै बहुत कम शब्दो मे और सटीक ढग से इन का deconstruct[विखन्डित] कर के अपनी चिन्ता ज़ाहिर करता हू।
जीतु जी ,स्रिजन जी व अन्य कुछ लोगो ने भी कहा "इस तरह के मेल जोल से आम सहमति बनाई जा सकती है और आचार सहिता बनाइ जा सकती है" यह दोनो ही बाते ब्लागिन्ग के उद्देश्य को खत्म करने वाली है। पहला, सहमति की अपेक्शा रखना एकदम गलत है क्योन्कि कोइ भी ब्लागेर अपना मत रखने के लिए स्वतन्त्र है। सहमति की इच्छा रखने वाले समाज मे न तो कुछ नया हो सकता है और न ही व्यक्ति नया सोच सकता है. यह सहमति समूह को चलाने वाले अनुशासन मे तब्दील होते देर नही लगती। और समूह बनते ही एक सन्चालन्कर्ता , अनुशासक, नियन्त्राक की ज़रूरत खडी होती है. वही ब्लागिन्ग का मूल विचार नष्ट हो जाता है. कई बार तो पता भी नही चलता कि वह सहमति कब विचारधारा का रूप ले लेती है। तब शुरु होता है एक दूसरे पर कीचड उछालने का सिलसिला ,कि मै ही सही हू और बाकी सब जो मेरी विचार्धारा को नही मानते गलत है या बेवकूफ़ है ।इसलिए ब्लागिन्ग की दुनिया मे किसी का प्रवेश निषेध मात्र भिन्न विचारधारा के कारण नही किया जाना चाहिए। ताज़ा उदाहरण नारद पर हुए विवाद के रूप मे देखा जा सकता है। इसलिए हमे दूसरो के मतो को सम्मान देना चाहिए और न केवल मतभेदो[conflict of ideas] को स्थान देना चाहिए बल्कि स्वस्थ मानसिकता के लिए ज़रूरी है कि विभेदो को पनपने दिया जाये।निश्चित रूप से ब्लागिन्ग एक सामूहिक क्रियाकलाप लगता है लेकिन गहराई से देखा जाए तो यह एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है।
अगर गैलिलियो दुनिया की सहमति का इतज़ार करता तो शायद ही हम कभी टेलीस्कोप देख पाते. कापरनिकस अगर सहमति से चलता तो इस तथ्य की खोज न कर पाता कि ग्रह प्रिथ्वी के गिर्द नही घूमते बल्कि सूर्य के चक्कर लगाते है. जहा सहमति हुई वही विचारो का खून हुआ. हमे कोई सरकार नही चलानी है कि हमारा सहमत होना ज़रूरी हो. पता नही लोकमन्च ,नारद ,मोहल्ला ब्लागिन्ग को सहमति का मन्च क्यो बनाना चाह्ते है. दूसरा, आचार सहिता की बात भी इसी से जुडी हुई है.[जिसका कम से कम मै समर्थन नही करता]. मै नही मानता कि हम असभ्य है ,अशिष्ट है। जिन्हे अपने बारे मे शन्का हो वो स्वय के लिए आचार सहिता खुद ही बना ले तो बेहतर होगा. मुझे लगता है अनर्गल, अवान्छित स्वयमेव बाहर हो जाएगा क्योकि यह मन्च उन्हे सहन नही करेगा, जैसा अभी कुछ दिनो पहलॆ हुआ।

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